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संपादक की ओर से

घुड़सवार  के छठे अंक में आपका स्वागत है। 


कुछ समय पहले, ट्विटर पर एक वार्तालाप में, कि कविता जटिल या सरल होनी चाहिए, मेरा यह कहना था - 

"कविता जटिलता या सरलता के पैमाने पर अच्छी-बुरी नहीं होती। जैसे कि जीवन में, कोई हंसी एक अट्टहास होती है, और कोई भीगी बिल्ली की तरह, और कोई लहर के उफ़ान की भाँती। कवि को यह चाहिए कि जब वह उफ़ान व्यक्त करना चाहता है, तब काग़ज़ पर उफ़ान ही उतरे, अट्टहास नहीं।"


किसी भी कलाकार, चाहें वह कवि हो, चित्रकार हो, संगीतकार हो या अभिनेता हो, के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है अपनी आत्मदृष्टि को इस तरह बख़ूबी उजागर करना कि संचरण हानि (अगर हम विद्युत के जगत के शब्दों का सहारा लें तो) कम से कम हो - कलाकार का सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी वह स्वयं होता है, उसकी स्पर्धा अपनेआप से ही है। यह बात ज़रूर है कि वे जो दुसरे छोर पर हैं, वे अपने-अपने रूपांतर का चश्मा इस पर चढ़ाएंगे, और यह कला की ख़ूबसूरती का ही एक अनिवार्य हिस्सा है। 


मुझे उम्मीद है कि इस अंक की रचनाएं पाठकों को बहुत लुभाएंगी, उतना ही रचनाकारों की ईमानदारी के लिए जितना कि व्याख्याओं की बहुलता के लिए। 


प्रणाम,


अंकुर अग्रवाल

संपादक, घुड़सवार साहित्यिक पत्रिका


अप्रैल २०२५, लिल्लेस्त्र्यम, नॉर्वे

एक्स / ट्विटर - @ankurwriter

फ़ेसबुक - @ankurwriter

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