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पद्मनाभ त्रिवेदी

पद्मनाभ त्रिवेदी उत्तर प्रदेश के सावित्री बाई फूले राजकीय महिला पॉलीटेक्निक, सहारनपुर, में व्याख्याता हैं एवं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रूड़की के मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विभाग से अंग्रेजी विषय में शोध कर रहे हैं। लेखक की विशेष रूचि रंगमंच अभिनय और साहित्य सृजन में है। ये हिंदी एवं अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लिखते हैं। इनकी कहानियां सेतु हिंदी और सेतु अंग्रेज़ी पत्रिकाओं (पिट्सबर्ग, अमेरिका) में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इनकी अंग्रेज़ी कविताएं Loftbooks (London) तथा Dreich (Scotland), Roi Faineant,  The Bayou Review, एवं Good Printed Things Magazines में प्रकाशित हो चुकी हैं।

उन्माद

काले घने सजल बादल

फैले हैं ऊपर आसमान में

जैसे उड़ेल दी हो किसी ने

असीम काली कपास

क्षितिज से क्षितिज तक

और मैं,

अकेला शहर की ऊंची छत से

इनकी श्यामलता में

शराबोर हूं,

कुछ यूं

कि मैं ख़ुद बादल हूं।

 

अरे! ये बादल मुझे उड़ा ले जा रहें हैं 

अतीत में

बीस-बाइस साल पहले।

एक बच्चा

कच्ची छत की मूंढेर पे बैठा

उन्मादी हो रहा है 

सुदूर से आती

आकाशी कालिमा को देख कर।

वह उन्हें मेघ कहता है,

और अंदर ही अंदर भीग जाता है

किसी उन्माद में। 

ज़ेह्न में चल रही है

अम्मा की सुनाई किसी कविता की

एक पंक्ति

"धूलि धूसर बादलों ने

भूमि को इस भांति घेरा..."

तभी आसमान काला हो गया है,

हवा का झोंका आया,

गांव के पुरातन खजूर के पेड़

मचल पड़े,

पीपल सरसराया,

नीम के पीले पत्ते 

अनगिनत

गोल गोल घूमते ज़मीन पर आ रहे हैं, 

लोग अपने कपड़े समेटने छतों पर आ गए हैं,

सयाने लोग खेत में 

धान रोपने के लिए निकल पड़े हैं।

बगल में बबूल पर

बया पंछियों के घोंसले

लहरा रहे हैं।

अचानक वह अपने छोटे हांथ पसार कर

घूमने, झूमने लगा है

और गा रहा है,

"आंधी पानी आवत जाए,

कव्वा ढोल बजावत जाए" 

ताल सुर में।

गांव के बच्चे कागज़ की नाव बनाने लगे हैं,

मेघ उसके शरीर को छूने लगे हैं,

बूँदें बनकर,

वह उन्मत्त 

बादलों को गले लगा रहा है।

 

पहली बूँद गिरी, वह बच्चा 

वर्तमान में चौंक पड़ा। 

मैं ने ख़ुद को

फ़िर से मेघ पाया

और सोचा,

"ये बादलों को बादल क्यों कहते हैं,

उन्माद क्यों नहीं कहते,

अतीत क्यों नहीं कहते

क्यों नहीं कहते जीवन",

लो

अब मैं भी भीग गया हूं,

बादलों के साथ-साथ 

मैं भी बरसने लगा हूँ।

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