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आयुष्य रंजन
आंगन की धुप का जाना
आंगन में आज तेज धुप आयी
आती धुप को देख
मैं बाहर नहीं जा पाया
दोपहर में
अकेले बैठे-बैठे
मुझे भूत दिखे
आज वे भूत
कुछ कह नहीं रहे थे
मेरी और अपने अतीत की
ख़ूब बात होती है
भूत बैठे मुझे देख रहे थे
पुराने घर की
उसी लक्कड़ की कुर्सी पे
आंगन में अचानक
धुप जाने लगी
बेमौसम, गर्मी के बीच
आंधी आने लगी
मैं उन भूतों को भूल
जाकर किवाड़ खोल
बाहर खड़ा हो गया
बादल अपना स्वरुप
बदल रहे थे
आँगन में आगे बढ़ कर
चैत की धीमी बारिश में
मैं तल्लीन हो गया
उस समय
कमरे में बैठे भूत
अपने आप चले गए
पुरानी आवाज़ों को लेकर
इस बेमौसम
अचानक बारिश ने
मेरे व्यग्र मन को
चुप करा दिया
मैंने एक छोटी चौकी
अपने पास खींची
आंगन के कोने में
साल की पहली वर्षा में
थोड़ी देर
सबसे दूर
थोड़ी देर
बैठा रहा
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