top of page

अनुज कुमार दुबे

अनुज कुमार दुबे परास्नातक हिंदी साहित्य, द्वितीय वर्ष जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के छात्र हैं। प्रारंभिक शिक्षा अपने जनपद देवरिया, उत्तर प्रदेश से प्राप्त की। स्नातक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) से किया।

चिड़िया की आवाज़

अबाध गति सें भागता प्रवाह,

थामा किसने कहां कब ?

हर दीर्घकालिक समय,

लौटता जमींन पर टूटता तारा।

फिर बन जाता 'टायर',

खोज आता नया ठिकाना।

रात कें शांय-शांय अंधेरे,

चुभती डराती जगाती

ठहर के देखता चारों ओर

विकृत मकान शांत कुत्ते !

दूर तक जलती चौड़ी सड़कों पर प्रकाश

सपाट काली, सफ़ेद पट्टियां

सफेद पट्टी पर चिपका

किसी जानवर का 'चाम' !

कोई खून, कोई गंध नहीं

चारों ओर घूम जाता, कई बार

नहीं उभर पाती कोई बात ?

दूर उस नाले के पास

खांसता एक बूढ़ा लगातार

झाकता अनगिनत बार

बढ़ते उस धुएं में लगातार !

ठहर जाता कई बार

फटें ओंठ पर जलता

बीड़ी का एक मशाल

दिखता बार-बार वह चहेरा

खड़े रोएं को हथेली से मलता।

ऊपर उठता धुंआ, चांद दिखा

टकराता उस फटी साड़ी के मोती सें

भरा था वह बजबज नालें में पूरा।

चिड़ियों के एक झुंड

उस घर के आंगन सें

झाकते सफ़ेद फूल वालें मदार

मिट्टी के डेहरी के पास

कुई-कुई करते पिल्ले के बच्चें

छत सें निकलीं छड़े

चिड़िया जिस पर बैठ, बोलती

वह आवाज़ आ-आ कर

घोट दी जाती, कई बार !

दौड़ती इस बजबज में शांत

उसकी आवाज़ नहीं, उसकी

उठती-गिरती पूॅंछ याद हैं।

bottom of page