
डॉ. पल्लवी मनोज दीक्षित
डॉ. पल्लवी मनोज दीक्षित ने हाल ही में दयालबाग एजुकेशनल इंस्टिट्यूट (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी), आगरा, से अंग्रेज़ी विषय में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। इन्हें हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में अपने विचारों को अभिव्यक्त करना पसंद है। साहित्य के क्षेत्र में इनकी गहरी रुचि है, विशेष रूप से कविता और लघु कहानियाँ लिखना इन्हें अत्यंत प्रिय है। लेखन इनके लिए आत्म-अभिव्यक्ति का माध्यम है, और यह सृजनात्मकता में निरंतर नयापन लाने का प्रयास करती हैं।
बदलते वक़्त की दास्तान
कुछ हम बदले, कुछ ज़माना बदल गया,
ख़्वाब वही थे, पर फ़साना बदल गया।
कल जो साये थे, आज धूप बन गए,
रिश्तों का मौसम सुहाना बदल गया।
हाथ में था जो, अब छूटता सा लगे,
वक़्त का रुख़, नज़राना बदल गया।
सड़कों पे चलते थे जो संग-संग कभी,
आज हर कोई ठिकाना बदल गया।
बचपन की गलियां भी चुप-चुप सी हैं,
हंसता-गाता वो अफसाना बदल गया।
पड़ोसी जो अपने से बढ़कर थे कल,
अब हर घर का किवाड़ा बदल गया।
बड़ों की सीखें कहीं छूट सी गईं,
नसीहतों का फ़साना बदल गया।
सपनों में जो रंग भरे थे कभी,
अब दुनिया का ठिकाना बदल गया।
हवा भी पुरानी नहीं रह गई,
हर झोंके का तराना बदल गया।
कुछ हम बदले, कुछ ज़माना बदल गया,
ख़्वाब वही थे, पर फ़साना बदल गया।