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साहिल यादव

साहिल यादव लोकनीति विश्लेषक एवं स्वतंत्र लेखक हैं। दिल्ली शहर में एक ‘क्षणिक पड़ाव’ और कागज़-कलम में ‘स्थायी पता’ ढूँढते हैं। दिन में लुट्येन्स के गलियारों में गोते लगाते हैं और रात को हिंदी कविता का अलाव सेंकते हैं।

 

इन्स्टाग्राम – @syahilence

एक याद

पहाड़ी रात

कल के अलाव में

सुलगता मैं ।

*

पाट न सकूं

रिश्तों के पहाड़ से

मन की खाई ।

*

आँखों सी झील

टूटा सब्र का बाँध

तू याद आई ।

*

जीवन नाव

सपनों का भंवर

छूटता छोर ।

*

तुम्हारा आना

ओस की बूँद पर

लटकी भोर ।

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