स्नेहल
स्नेहल बंब मुंबई शहर मैं रहने वाली एक १७ साल की युविका हैं। इस वर्ष इन्होंने बारवीं पास की। कविता लिखना और साहित्य पढ़ना इनकी कई रुचियों में से है। यह १३ वर्ष की आयु से अंग्रेज़ी में कविता लिख रही हैं और कुछ महीने पहले ही इन्होंने हिंदी में कविता लिखना शुरू किया।
रात
जैसे यह दिन ढल जाता है
मेरे मन में अंधकार सा छाता है,
ए चांद, तू सुकून क्यों नहीं पहुँचाता है?
तू आता है, चांदनी की चादर मैं सबको सुलाता है,
पर मेरे मन-ओ-सागर में उपद्रव क्यों मचा जाता है?
तेरी शीतलता की तपिश मुझे जला जाती है,
शायद सूरज की किरणें मेरी ऊर्जा ढलते समय तुझे दे जाती हैं
अब तो पूर्णिमा की नही, अमावस की राह देखी जाती है।
जैसे रात्रि की दस्तक होती है, लहरें मेरा चैन बहा ले जाती है,
और इस बहाव की कीमत हर रात मेरे आसुओं से भरी जाती है।
खोया हुआ चैन ढूंढने जाऊँ,
या किनारे को छूना चाहूँ,
फिर शांत होने का प्रयास करूं
तो यह चांदनी यादों का सैलाब ले आती है,
और ग़ुम हो जाती हूँ मैं अपने मन के विशाल समंदर में।
फिर सारी रात ख़ुद की तलाश में जाती है
और यह निशा मुझे दिशाहीन कर जाती है,
कम्बख़्त यह रात मुझसे अब नही काटी जाती है।
सब कहते हैं
तेरी चांदनी तो कोहिनूर है,
पर हक़ीक़त में तो बस ऊपरी नूर है,
इस समंदर की गहराई से तेरी रोशनी काफ़ी दूर है,
ऊपर हीरों की बौछार है, पर भीतर से निष्प्राण ग़ुरूर है।
यह उठती लहरों में डूबता मेरा दिल,
यह ख़ामोश सी रात मे शोर से गूंजता मेरा ज़हन,
यह निरंतर सागर में अचल सा मेरा अतीत,
यह नए दिन की उदय में डूबता हुआ मेरा आज,
और यह चांदनी के हूर में बेनूर होता मेरा वजूद
मेरे हिस्से में, ए महताब, शायद यह ही है तेरा सुकून।