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तारा इसाबेल जम्ब्रानो

तारा इसाबेल जम्ब्रानो एक मूल की भारतीय लेखिका हैं जो अब टेक्सास (अमेरिका) में रहती हैं| "मैं" उनकी हिंदी में प्रकाशित पहली कविता है|

मैं

कुछ आशाओं की ज्योत से उजले होते हुए, कुछ दूसरों के उपहास से बिखरते हुए,

कुछ उल्लास में आसमान को छूते हुए, कुछ व्यथा के गड्ढों में गलते हुए,

कुछ बादलों की रफ़्तार में बहते हुए, कुछ तारों की मद्धम रौशनी में छुपते हुए,

कुछ ममत्व  से सीमित होते हुए, कुछ स्वयम की उन्मुक्तता से बहकते हुए,

इन अनदेखे  रंगों का एक मिश्रण हूँ मैं, समय की रोज़ बदलती तस्वीर का एक अक्स हूँ मैं |


कभी संस्कारों की सीधी  राहों पर चलते हुए, कभी प्रतिबंधित पगडंडियों पर उतरते हुए,

कभी फुरसती शक में घिरे हुए, कभी अलसाए आत्मविश्वास में ठहरे हुए,

कभी  प्रकृति के अचरजों को गले लगते हुए, कभी उनके रचयिता को मंदिरों में ढूँढते हुए,

कभी गृहस्थी के चौके में जीवन पकाते हुए, कभी घड़ी की सुइयों में बीते वक़्त को नापते हुए,

इन अनकही आवाजों का एक सुर हूँ मैं, जो सिर्फ गाया जाए, वो अनसुना मधुर गीत हूँ मैं |


कुदरत के व्यसन का प्रमाण  हूँ मैं, समाज की सीमाओं का एक गुमशुदा निशाँ हूँ मैं,

जो जन्म से मरण तक अनगिनत यात्राएं  कर जाये, वह थका  पथिक हूँ मैं,

जो खुद के महत्त्व से कभी पूरी तरह अलग ना हो पाए, उस अहम् का शिकार हूँ मैं,

जो सिर्फ जीवन की असमानता  पर केन्द्रित हो जाये, वह सीमित कुआँ हूँ मैं,

जो  मानवीय ताक़तों और कमियों में उलझ जाये, वो रहस्यवादी एहसास हूँ मैं,

कभी अन्दर के भगवान् को टटोलता, तो कभी भय से भरा हुआ एक शैतान हूँ मैं |


बड़ों के आशीर्वाद से ढका और छोटों के प्यार से बंधा रिश्तों का एक वस्त्र हूँ मैं,

जो कभी था परिवार के पेड़ का केवल एक फूल, आज उसी का मजबूत तना हूँ मैं,

जिसे मृत्यु भी ना पूरी तरह मिटा सके, उस याद की खाद का एक अंश हूँ मैं,

जो एक मस्तिष्क में अनेक सदियों का ज्ञान ले कर समा जाये, वह ब्रम्हाण्ड हूँ मैं ,

तर्क से परे और विवेक से अलग जो आत्मा का अनुभव पा जाये, वह इंसान हूँ मैं |

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